जगन्नाथ रथ यात्रा 2025: आस्था, परंपरा और श्रद्धा का महोत्सव
रथ यात्रा का महत्व
पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा भारत की सबसे विशाल और पवित्र धार्मिक यात्राओं में से एक है। यह यात्रा भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के रथों के साथ गुंडिचा मंदिर तक होती है। इस दौरान लाखों श्रद्धालु रथ खींचने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं। इसे भगवान के “जन-संवाद” का प्रतीक माना जाता है।
जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 की तारीख
इस वर्ष रथ यात्रा 27 जून 2025, शुक्रवार को मनाई जा रही है। यह उत्सव कुल 9 दिनों तक चलता है जिसमें भगवान गुंडिचा मंदिर में निवास करते हैं और 4 जुलाई को वापस लौटते हैं।
तीनों रथों की विशेषताएँ
- नंदिघोष (भगवान जगन्नाथ का रथ): 18 पहिए, 45 फीट ऊँचा, लाल और पीले रंग का।
- तालध्वज (भगवान बलभद्र का रथ): 16 पहिए, नीला और हरा रंग।
- दर्पदलना (देवी सुभद्रा का रथ): 14 पहिए, काला और लाल रंग।
मुख्य परंपराएँ और रस्में
- पहंडी यात्रा: भगवान को मंदिर से रथ तक लाने की प्रक्रिया।
- छेरा पहरा: पुरी के गजपति राजा द्वारा रथों की सफाई – समानता का प्रतीक।
- सुना वेश: वापसी पर भगवानों को सोने के आभूषणों से सजाया जाता है।
- नीलाद्री बिजे: देवी लक्ष्मी से अनुमति लेकर मंदिर में पुनः प्रवेश।
इतिहास और मान्यताएँ
कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ विष्णु के अवतार हैं और रथ यात्रा उनके अपने भक्तों से मिलने की यात्रा है। एक विशेष कथा सलाबेग नामक मुस्लिम भक्त की है, जिसके लिए भगवान ने रथ रोक दिया था – यह धार्मिक सहिष्णुता का आदर्श उदाहरण है।
विश्वभर में रथ यात्रा का आयोजन
पुरी के अलावा मुंबई, दिल्ली, अहमदाबाद, लंदन, न्यूयॉर्क, टोरंटो, मेलबोर्न जैसे शहरों में भी ISKCON द्वारा रथ यात्रा आयोजित की जाती है।
निष्कर्ष
जगन्नाथ रथ यात्रा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक समृद्धि, शुद्ध भक्ति और सामाजिक समरसता का प्रतीक है। यदि आपने इसे अनुभव नहीं किया है, तो यह वर्ष आपके लिए एक अनूठा अवसर है।
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